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मां दुर्गा के 9 अवतार

Maa Durga Nav Avtar

Maa Durga Nav Avtar

मां दुर्गा के 9 अवतार(maa Durga Ke 9 avatar) हैं वो  एक व्यक्ति के जीवन के अलग-अलग पड़ाव हैं,   उनको समझाते हैं, तो आइए एक-एक करके मां दुर्गा  के हर एक अवतार के पीछे की गहराई को समझते हैं ।

 शैलपुत्री(Day 1 navratri)

दुर्गा जी का प्रथम अवतार शैलपुत्री  है और अगर आप नाम पर ध्यान दें तो इसमें दो  चीज देखने को मिलती है: एक शैल और दूसरा पुत्री । शैल का मतलब होता है पर्वत तो शैलपुत्री का मतलब हो  जाता है की पर्वत की  पुत्री और ये जो रूप है मां का ये सबसे प्राचीन रूप है, मतलब अभी वो पैदा हुई है ।

अगर इस अवतार की तुलना की जाए तो हम इस अवतार की तुलना एक नवजात  शिशु से कर सकते हैं जो तुरंत पैदा हुआ होता है और  जब शिशु पैदा होता है तो अपने नाम से नहीं जाना जाता  है।

मां-बाप के नाम से जाना जाता है । इस अवतार का,  मां के इस अवतार का स्वयं का नाम नहीं है  । वो अपने पिता के नाम से जानी जा रही हैं:   शैलपुत्री

ऐसे ही बच्चे भी अपने पिता या मां के  नाम से जान जाते हैं ।तो मां के केवल दो हाथ दिखाएं गए हैं  वैसे तो अष्टभुजा या फिर 18 भुजाएं दिखाई जाती हैं ।  उनका विकराल रूप होता है ,अभी बस पैदा हुआ है ।

तो इसीलिए इनके दो हाथ दिखाएं गए हैं, एक हाथ में   है त्रिशूल और एक हाथ में है कमल । तो त्रिशूल जो  है वो विध्वंस प्रतीक है, असुर मर्दन का प्रतीक है,   वहीं कमल जो है वह सौम्यता का प्रतीक है । यह नवरात्रि का पहला दिन होता है

ब्रह्मचारिणी(Day 2 navratri)

ब्रह्मचारिणी Image-Source-google

मां दुर्गा का द्वितीय अवतार जो है  वह ब्रह्मचारिणी अवतार है और अगर इस अवतार की  आप तुलना करें तो आप इस अवतार की तुलना एक विद्यालय  जाने वाले शिशु से कर सकते हैं ।

शिशु पैदा हो गया,  शैलपुत्री, अब उसको विद्यालय जाना है क्योंकि अब जो  उम्र है वो सीखने की सही उम्र है और अब हमें अध्ययन   करना है ।

कठिन अनुशासन से ब्रह्मचर्य का पालन  करना है इसीलिए इस अवतार को ब्रह्मचारिणी बोला   गया है । अगर आप प्राचीन भारत में देखें तो प्रथम  जो 25 वर्ष होते थे ।

जब आप विद्यालय में पढ़ते थे,   गुरुकुल में पढ़ते थे, तो ब्रह्मचर्य का पालन  करना होता था । उसे ब्रह्मचर्य आश्रम बोला जाता   था इसलिए इस अवतार को भी ब्रह्मचारिणी कहते हैं । अगर आप स्वरूप को देखें तो मां जो है, उन्होने सफेद  वस्त्र को धारण किया है । ये उम्र जो हमारी है वो त्याग और तपस्या  की है ।

इसलिए मां सफेद वस्त्र धारण की हैं और दोनों हाथों  में जिसमें एक में कमंडल है और एक में माला है,   वो उनका तपस्विनी स्वरूप है मतलब यह जो स्वरूप है यह  त्याग और तप का स्वरूप है ।

अपने जीवन को उत्कृष्ट   बनाने के लिए आपको प्रथम जो 25 वर्ष है इसमें मेहनत  करनी होती है, सांसारिक प्रपंच से दूर जाना पड़ता है और ऐसा हर विद्यार्थी को करना पड़ता है ।

अगर उसे  जीवन में सच में कुछ अच्छा करना है, कुछ अच्छी दिशा  में आगे बढ़ाना है । इसीलिए इस स्वरूप की तुलना  आप विद्यालय में पढ़ने वाले, गुरुकुल में पढ़ने   वाले एक शिशु से कर सकते हैं यही मां दुर्गा  के ब्रह्मचर्य अवतार के पीछे का अर्थ है।

चंद्रघंटा(Day 3 navratri)

चंद्रघंटाImage-Source-google

दुर्गा का तीसरा अवतार चंद्रघंटा है  और यह मां का सबसे संपन्न स्वरूप है । जहां पर आपने  देखा की शैलपुत्री में दो ही हाथ थे, ब्रह्मचारिणी  में दो ही हाथ थे, यहां पर मां के 10-10 हाथ   हैं ।

जहां कुछ हाथ शस्त्रों से सुशोभित  हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ हाथों में कमल, घंटा,   कमंडल और पानी का कलश है । तो यहां पर मां भक्ति  और शक्ति से परिपूर्ण हैं।

मां का यह जो स्वरूप है   यह जैसे विद्यालय से, गुरुकुल से, जब बच्चा पढ़  लेता है और नौजवान हो जाता है और उसके पास ढेर   सारी विद्याएं आ जाती है ।

अब वो जीवन में तैयार हो  गया है किसी भी अवसर को प्राप्त करने के लिए ,किसी भी तरह के संघर्ष के लिए, तो मां का यह स्वरूप  जो है उस विद्यार्थी की तरह है जिसने पढ़ाई पूरी कर  ली है ।

जैसे माँ ने ब्रह्मचारिणी रूप में तपस्या  की, त्याग किया, और फिर उसके बाद जो है उनको इस   तरह की ढेर सारी विद्याओं का ज्ञान हो गया और उसके  बाद देखें तो मां के मस्तक पर तीसरी आंख भी खुल  गई है । जो इस बात का प्रतीक है की मां अब किसी भी  तरह के संघर्ष के लिए तैयार हैं ।

अगर शत्रु आएंगे तो उनका  दमन करेंगी और अगर जरूरत पड़े तो धर्म की   स्थापना करेंगी तो जिस प्रकार एक विद्यार्थी  अपने जीवन के लिए पूर्णतया तैयार हो जाता है।

कूष्मांडा(Day 4 navratri)

कूष्मांडा Image-Source-google

मां दुर्गा का चौथा अवतार कूष्मांडा  है और अगर आप कूष्मांडा नाम को ध्यान से देखें, उसका  संधि विच्छेद कुछ इस प्रकार है के कुसुम का अर्थ है फूलों के समान हंसी (मुस्कान) और आण्ड कर का अर्थ है ब्रहमाण्ड अर्थात वो देवी जो जिन्होंने अपनी मंद (फूलों) सी मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया है  ऐसा माना जाता है की जब कुछ नहीं  था ।

तब माँ ने ब्रह्मांड की रचना इसी स्वरूप से की   थी तो इस स्वरूप की तुलना हम गर्भवती महिला से कर  सकते हैं की मतलब जैसे मां कूष्माण्डा ने ब्रह्मांड  को रचा वैसे ही अब गर्भवती महिला भी एक नए जीवन  की रचना करने वाली है ।

अगर आप ध्यान से देखें   तो इस स्वरूप में माँ एक मटका को भी लिए हुए हैं और  ऐसा माना जाता है की उसमें शहद या फिर अमृत होता है,  और अगर आप ध्यान दें तो हमारी पौराणिक कथाओ में  मटके को गर्भ का प्रतीक माना जाता है ।

बहुत ढेर  सारी कथाओ में आपको देखने को मिलेगा,  मटकी से शिशु उत्पन्न हो रहे हैं तो   इसलिए मटके को गर्भ का प्रतीक माना जाता है । इसलिए  मां के स्वरूप में मटका है और मां के स्वरूप को एक र्भवती महिला के स्वास्थ्य और शक्ति के प्रतीक  की  तरह देखते हैं जो एक नए जीवन को उपजाने वाली है ।

स्कंदमाता(Day 5 navratri)

स्कंदमाता Image-Source-google

मां दुर्गा के पंचम अवतार स्कंदमाता की उपासना करते हैं । अब जो माता शैलपुत्री के रूप में पुत्री थी, अब वो मां बन गई हैं । अब उनकी पहचान जो है, वो एक मां के रूप में है इसलिए उनका नाम उनके पुत्र स्कंद जो की भगवान कार्तिकेय हैं, उनकी माता के होने से है ।

मतलब अब वो स्कंदमाता है । तो ये जो रूप है, स्वरूप है मां सकंदमाता का, ये एक माँ का स्वरूप है । जब कोई गर्भवती महिला मां बन जाती है तो उसके स्वरूप की तुलना इस स्वरूप से कर सकते हैं ।

यहां पर अगर आप देखें तो मां ममतामयी है, पुत्र वात्सल्य से परिपूर्ण है इसलिए यहां पर उनके हाथ में कोई शस्त्र नहीं दिखाए गये हैं ।

अभी उनका पूरा ध्यान अपने शिशु पर है । जैसे एक मां ममता से भर जाती है, ममतामय हो जाती है और अपने शिशु क ध्यान रखती है ।

इसीलिए मां स्कंदमाता के स्वरूप में आप देखें की उनकी गोद में उनके पुत्र स्कंद भगवान भी बैठे हुए हैं और यह मां का जो स्वरूप है यह मातृत्व का स्वरूप है इसीलिए स्कंदमाता को मातृत्व की देवी भी बोला जाता है ।

तो मां दुर्गा के इस स्वरूप की तुलना हम एक माता से कर सकते हैं जिसने अभी एक शिशु को जन्म दिया है ।

कात्यायनी(Day 6 navratri)

कात्यायनी Image-Source-google

मां दुर्गा का छठा अवतार कात्यायनी अवतार है और इसी रूप में माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था । जैसे जब एक स्त्री मां बन जाती है तो वो सर्वशक्तिशाली हो जाती है, सर्वशक्तिमान हो जाती है ।

अब वो किसी पे निर्भर  नहीं रहती है । अपने बच्चों के लिए,अपने लिए, वो स्वयं में काफी होती है । तो मां दुर्गा का स्कंदमाता के बाद मतलब जब वो मां बन चुकी है तो अब वो स्वयं में शक्तिशाली हो गई हैं, सर्वशक्तिमान हो गई हैं इसीलिए वो कात्यायनी रूप को धारण करती हैं ।

कभी-कभी इस अवतार की शक्ति को प्रदर्शित करने के लिए उनकी 18 भुजाएं भी दिखाई जाती हैं तो मां का ये जो स्वरूप है वो किसी भी स्त्री के मां बनने के बाद जो उसके अंदर शक्ति आ जाती है उसका स्वरूप है । मां दुर्गा का यह शक्ति स्वरूप है इसलिए इस स्वरूप को शक्ति की देवी भी बोलते हैं ।

कालरात्रि(Day 7 navratri)

कालरात्रि Image-Source-google

मां दुर्गा का सप्तम अवतार कालरात्रि है जिसे हम काली भी बोलते हैं और कालरात्रि का अगर आप अर्थ देखें तो दो तरह के हमें अर्थ देखने को मिलते हैं ।

एक कालरात्रि का अर्थ होता है की रात्रि की तरह काला और दूसरा अर्थ होता है की काल को निगल जाने वाला । तो ये जो मां का रूप है ये बहुत प्रचंड प्रलय रूप है ।

यहां पर अंधेरे का मतलब है की सृष्टि का प्रलय हो गया है । जहां पर काल सृष्टि को लील रहा है वहां काल को लील रही है काली । तो माता दुर्गा का जो रूप है, ये बहुत क्रोध रूप है और रौद्र रूप है ।

इसमें मां दुर्गा के सब्र का बांध टूट चुका हैऔर इसी रूप में उन्होने असुर के रक्त को पीकर असुर का वध कर दिया था और उनके क्रोध की सीमा इतनी बढ़ गई थी की स्वयं उनके पति शिव जी को आना पड़ा था ।

उनको संभालने के लिए  तो माता दुर्गा का ये बहुत रौद्र रूप है जो ये दर्शाता है की जहां एक स्त्री अपनी ममता से एक नए जीवन को रच सकती है, ब्रह्मांड को रच सकती है ।

वही समय आने पर धर्म की स्थापना के लिए रुद्र रूप धारण करके जीवन को ग्रहण भी कर सकती है । जब ब्रह्मांड की रचना हो सकती है तो ब्रह्मांड का प्रलय भी हो सकता है ।

इसलिए जहां पर एक स्त्री एक शिशु को जन्म दे सकती है वहीं जरूरत पड़ने पर वो जीवन को ग्रहण भी कर सकती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप स्त्री का सबसे विकराल स्वरूप है ।

दोस्तों पंचम अवतार में मां दुर्गा माता बनने के बाद, स्कंदमाता बनने के बाद, अपनी शक्तियों के उत्कृष्ट पद पर चली जाती हैं । जैसे की उन्होंने कात्यायनी रूप लिया जो की एक सर्वशक्तिशाली रूप है । उसके बाद उन्होंने कालरात्रि रुप लिया जो उनका रौद्र और बहुत क्रोध का रूप है ।

तो ये जो रूप हैं, माता दुर्गा के सबसे परिपूर्ण रूप हैं, कंप्लीट रूप हैं, उनके सबसे उग्र रूप हैं तो इसलिए आप देखिए की षष्ठी, सप्तमी के बाद मां दुर्गा की जो पूजा अर्चना है, उपासना है, वो बहुत तीव्र हो जाती है ।

सप्तमी, अष्टमी, नवमी का बहुत महत्व है लेकिन जहां पर मां दुर्गा ने कात्यायनी और कालरात्रि रूप में अपने रौद्र रूप की पराकाष्ठा को दिखाया वहीं उन्होंने ये भी बताया की वो शांति, सुंदरता, और सौम्यता की भी पराकाष्ठा पर जा सकती हैं ।

महागौरी(Day 8 navratri)

महागौरी Image-Source-google

मां दुर्गा का जो अष्टम अवतार है वो महागौरी का अवतार है और महागौरी के स्वरूप में वो अपने पति शिव जी के साथ और अपने पुत्रों गणेश जी और  कार्तिक जी के साथ एक पारिवारिक सौहार्द के  रूप में रहती हैं

तो यह जो स्वरूप है मां  दुर्गा का वो किसी भी स्त्री या पुरुष को   उसके परिवार के उन्नति और सुख के प्रति जो  उसके उत्तरदायित्व हैं उसको याद दिलाता है   । माँ दुर्गा का ये ये स्वरूप प्रेम पूर्ण स्वरूप  है ।

सिद्धिदात्री(Day 9 navratri)

सिद्धिदात्री Image-Source-google

मां दुर्गा का अंतिम रूप, नवम रूप सिद्धिदात्री रूप है और मां दुर्गा के इस स्वरूप की तुलना हम उस स्त्री से कर सकते हैं जिसे जीवन के सभी अनुभवों का ज्ञान हो चुका है और अब इस ज्ञान का उपयोग करके वो अपने आगे आने वाली पीढियों को धर्ममार्ग पर प्रशस्त करेंगी ।

मतलब मां दुर्गा के इस स्वरूप ने ब्रह्मांड की हर चीज को जान लिया है, ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त कर ली है, अब उनके लिए कोई चीज अगम्य नहीं है । अगर उनके भक्त उनसे कुछ भी मांगे, चाहे लौकिक या परलौकिक, हर चीज को वो पूर्ण करने में समर्थ हैं । जैसे हमारी नानी और दादी होती हैं की नाती पोतों के लिए कुछ भी कर जाती हैं ।

कितना भी कर जाएँ कम लगता है । इसी प्रकार से मां दुर्गा का ये स्वरूप है । सिद्धिदात्री स्वरूप भक्तों पर अनंत कृपा बरसाने वाला स्वरूप है । यह मां दुर्गा का अंतिम, पूर्ण, अनंत, असीम और दयावान स्वरूप है

 

 

 

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