हिमाचल में सनसनी: हाटी जनजाति की बेटी सुनीता ने दो भाइयों प्रदीप-कपिल से की बहुपतित्व विवाह! सार्वजनिक उत्सव में जिंदा हुई सदियों पुरानी परंपरा
सिरमौर के ट्रांस-गिरी क्षेत्र में तीन दिवसीय भव्य समारोह (Polyandry Marriage) के बाद हाटी समुदाय (Hatti Tribe) ने रचा इतिहास, शिक्षित युवाओं ने दिखाई सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) की राह
कुल्लू, 22 जुलाई 2025: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh News) के दुर्गम सिरमौर जिले में एक ऐतिहासिक घटना ने सामाजिक परंपराओं और आधुनिक सोच के बीच सेतु बनाया है। ट्रांस-गिरी क्षेत्र (Trans-Giri Tradition) के शिलाई गाँव में हाटी जनजाति (Hatti Tribe) की युवती सुनीता चौहान (Sunita Chauhan) ने दो भाइयों—प्रदीप नेगी और कपिल नेगी—के साथ बहुपतित्व विवाह (Polyandry Marriage) करके न सिर्फ सदियों पुरानी प्रथा (Ancient Practice) को पुनर्जीवित किया, बल्कि इसे खुलेआम सार्वजनिक उत्सव (Public Celebration) में तब्दील कर दिया। यह घटना इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि तीनों युवा उच्च शिक्षित हैं और उन्होंने जनजातीय रीति-रिवाजों (Tribal Customs) को गर्व से स्वीकारा।
Image Source:Google
तीन दिनों तक जश्न में डूबा सिरमौर
12 से 14 जुलाई तक चले तीन दिवसीय समारोह (Three-Day Ceremony) के दौरान शिलाई गाँव सांस्कृतिक धूम से गूँज उठा। सैकड़ों ग्रामीणों और रिश्तेदारों ने इस दुर्लभ सामूहिक विवाह (Collective Marriage) में शिरकत की। समारोह का सबसे मार्मिक पल तब आया जब तीनों—प्रदीप (जल शक्ति विभाग में कर्मचारी), कपिल (विदेश में हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में कार्यरत) और सुनीता (आईटीआई प्रशिक्षित)—विवाह मंच पर एक साथ नृत्य करते हुए ग्रामीण बुजुर्गों (Village Elders) का आशीर्वाद ले रहे थे। पारंपरिक लोक गीतों (Folk Songs) की थाप पर उनके कदमों ने साबित किया कि शिक्षा और संस्कृति (Education & Tradition) परस्पर विरोधी नहीं हैं।
“गुपचुप प्रथाओं को दी सार्वजनिक पहचान”
दूल्हों के रिश्तेदार हीरा सिंह के अनुसार, “हमारे समुदाय में बहुपतित्व विवाह (Polyandry Practice) गोपनीय तौर पर होते रहे हैं, लेकिन इन तीनों ने इतिहास (Created History) रच दिया। सुनीता को यह अधिकार है कि वह किस पति के साथ रहना चाहती है—यह हमारी प्रथा में महिला की स्वायत्तता (Woman’s Agency) का प्रमाण है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि यह विवाह सिर्फ एक शादी नहीं, बल्कि हाटी पहचान (Hatti Identity) को बचाने का संदेश है।
क्यों जरूरी थी बहुपतित्व की प्रथा?
हाटी समुदाय (Hatti Community) में यह प्रथा कठिन भौगोलिक चुनौतियों का तार्किक समाधान थी:
-
जोत का संरक्षण: पहाड़ों में खेती योग्य भूमि सीमित थी। एक ही परिवार की जमीन को बंटवारे से बचाने के लिए भाई एक साझी पत्नी (Shared Spouse) से विवाह करते थे।
-
श्रम की एकजुटता: कृषि और पशुपालन जैसे कठिन कार्यों के लिए परिवार में कई पुरुषों की उपस्थिति जरूरी थी।
-
सामाजिक सुरक्षा: युद्ध या दुर्घटनाओं में पुरुषों के निधन पर परिवार का भरण-पोषण सुनिश्चित होता था।
आधुनिक दौर में क्यों है चर्चा?
भारतीय कानून (Indian Law) में बहुपतित्व स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन हिंदू विवाह अधिनियम इसे मान्यता नहीं देता। इसके बावजूद, सिरमौर का यह विवाह तीन कारणों से खास है:
-
सांस्कृतिक दावेदारी (Cultural Assertion): जनजातीय समुदायों (Tribal Communities) द्वारा अपनी विरासत को बचाने का प्रयास।
-
युवाओं की सोच: शिक्षित पीढ़ी (Educated Youth) द्वारा पुराने रिवाजों को नए संदर्भ में अपनाना।
-
महिला की पसंद: सुनीता का अपने रहने का स्थान चुनने का अधिकार।
हाटी जनजाति: एक झलक
हाटी समुदाय (Hatti Tribe) मुख्यतः सिरमौर (ट्रांस-गिरी) और उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र में रहता है। इनकी पहचान पारंपरिक ऊनी पोशाक, स्थानीय बोली और सामूहिक निर्णय प्रणाली से है। बहुपतित्व विवाह (Polyandry System) इस जनजाति की सांस्कृतिक विरासत (Cultural Legacy) का अटूट हिस्सा रहा है, जो अब धीरे-धीरे लुप्त हो रहा था।
परंपरा बनाम प्रगति
यह विवाह सांस्कृतिक संरक्षण (Cultural Preservation) और लैंगिक समानता (Gender Equality) के बीच चल रही बहस को नए सिरे से उछालता है। जहाँ एक ओर ग्रामीण इसे “जड़ों से जुड़ाव” बता रहे हैं, वहीं शहरी विशेषज्ञ महिला अधिकारों पर सवाल उठाते हैं। परंतु इस घटना ने एक सच्चाई तो स्पष्ट कर दी—भारत की जनजातीय संस्कृति (Tribal Culture) अभी भी अपनी प्राचीन परंपराओं को जीवित रखने को संकल्पित है। जैसा कि हीरा सिंह कहते हैं: “यह विवाह हमारे अस्तित्व का उत्सव है।”
for more detail of above news click below link